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लेखक:

प्रो. जगमल सिंह

प्रो. जगमल सिंह राजस्थान की माटी-पानी में पल-बढ़कर अपने अंचल के शासकीय महाविद्यालयों में छह वर्ष तक अध्यापन के उपरांत मणिपुर गए तो फिर पूर्वोत्तर में ही रम गए। मणिपुर विश्वविद्यालय, इम्फाल एवं असम विश्वविद्यालय, सिलचर में हिंदी विभाग के संस्थापक, अध्यक्ष रहे एवं सिलचर के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं आचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए। पूर्वोत्तर के तीन विश्वविद्यालयों के विजिटिंग प्रोफेसर रहे। भारत सरकार के अनेक मंत्रालयों की हिंदी सलाहकार समितियों के सदस्य रहे तथा अनेक संस्थानों के लिए अपनी विशेषज्ञ सेवाएँ दीं। पूर्वोत्तर के अनेक राज्यों की लोककथाओं के अलावा गृह अंचल राजस्थान की लोकगीतों पर अनेक पुस्तकें लिखीं या संकलित-संपादित कीं। पूर्वोत्तर के सेनानियों पर भी पर्याप्त लेखन किया। साहित्य एवं संस्कृति के अनेक पक्षों पर भी लेखन। बाल साहित्य को भी अपनी लगभग आधा दर्जन कृतियों से समृद्ध किया। वयोवृद्ध लेखक ने अनेक ग्रंथों/स्मारिकाओं आदि का संपादन किया। आधा दशक लंबी अपनी अनथक-अनवरत जारी जीवन-यात्रा में लेखक को बीसेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए। 'साहित्य वाचस्पति' की पदवी से भी विभूषित। संपत्ति, ब्यावर में निवास।

पूर्वोत्तर की जनजातीय क्रांतियाँ

प्रो. जगमल सिंह

मूल्य: $ 5.95

अज्ञात नायकों की गाथा: पूर्वोत्तर भारत की जनजातियों का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान...

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